स्टार प्रचारक अर्थात मोदी के भाषणों को सुनकर क्या ये नहीं लगता कि देश में आम चुनाव एक ही दिन में सम्पन्न होने चाहिए? प्रधानमंत्री अभी तक झूठ बोल रहे थे या सच? राहुल गांधी किसका ज़िक्र कर रहे थे हैं और किसका नहीं ये आप तय कीजिएगा। तेलंगाना की एक रैली में जो कहा क्या उससे ये नहीं लगता कि मोदी ने अदाणी और अंबानी पर आरोप लगा दिया है कि इन लोगों ने टेम्पो में काला धन लाद कर कांग्रेस को पहुंचाया है? क्या मोदी ने राहुल गांधी को चुनौती देकर आम चुनावों और परिणामों को लेकर बहुत कुछ देश के सामने नहीं रख दिया? या फिर मोदी द्वारा इस तरह का ज़िक्र क्या राहुल गांधी की बड़ी राजनैतिक जीत मानी जा सकती है या कुछ और कहा जाए? देखिए सब कुछ इस विडियो में -
2014 से राहुल गांधी उद्योगपतियों और मोदी के संबंधों को लेकर मुखर रहे हैं। अब इसे क्या समझा जाए ये तो आप कमेन्ट करके ही बताइयेगा लेकिन हम सवाल ये जरुर करना चाहेंगे कि 2014 से पहले भाजपा कांग्रेस और उद्योगपतियों को लेकर क्यों नहीं बोली? आप थोड़ा सा गौर करेंगे तो इस ट्रेंड को समझ ही जायेंगे। वैसे मुझे मोदी के इस भाषण में एक अच्छाई भी नज़र आई है... लेकिन वो है क्या ये जानने से पहले आइये ज़रा गौर फरमा लेते हैं प्रधानमंत्री के भाषण के उस हिस्से पर जिसमें उन्होंने एक एतिहासिक खुलासा कर डाला है।...
आपने सूना होगा कि नोट टेम्पों में भरकर अडानी और अम्बानी लेकर जाने का आरोप लगाया है। कोई भी व्यक्ति अपनी अभिव्यक्ति में किसी का ज़िक्र व्यक्ति की उस छवि के हिसाब से ही करता जो वो अपने मन में रखता है। ऐसे में मैं और आप क्या ये दावे के साथ नहीं कह सकते कि इन उद्योगपतियों की छवि में और एक टेम्पो चलाने वाले व्यापारी में काफी कुछ समानताएं हैं अर्थात क्या इसे ऐसे भी नहीं माना जा सकता कि जब तक एक व्यक्ति को सरकारी सहयोग और छत्रछाया ना मिले तो उसकी कोई हैसियत ही नहीं हो सकती एक बड़े उद्योगपति बनने की? अब बात ये तो स्पष्ट हो ही चुकी है कि ये बयान घबराहट में दिया हुआ नहीं बल्कि जाने अनजाने एक राज के बाहर आ जाने वाली बात है। वैसे तो प्रधानमंत्री का या किसी का भी किसी के कृत्य आदि पर सवाल उठाना वाजिब है लेकिन साथ ही में प्रधानमंत्री कहा कि जरुर दाल में कुछ काला है। अब देश के प्रधान मंत्री एक स्टेटमेंट दे रहे हैं तो क्या एक सामान्य बुद्धि का व्यक्ति इसका ये मतलब नहीं निकालेगा कि वास्तव में तो बात सही है! अगर ऐसा होता है तो ये क्यों नहीं मान लिया जाए कि आमजन को ये सन्देश देने की कोशिश हो रही है कि सत्ता हस्तांतरित हो रही है या ....वैसे देखने वाली बात तो ये ही है कि Congress ने पिछला लोकसभा चुनाव ठीक से क्यों नहीं लड़ा और BJP ने ये वाला ठीक से क्यों नहीं लड़ा असली खेल इसी बीच है।
एक सवाल अब ये बनता है कि क्या राहुल गांधी ने अडानी-अम्बानी का नाम लेना बंद कर दिया है? हो सकता है कर दिया हो और ये भी हो सकता है कि नहीं किया हो! वैसे इस बात की पुष्टि रविश कुमार जैसे विश्लेषक कर सकने में सक्षम हो लेकिन ख़बर गवाह इस ओर अपना ध्यान केन्द्रित नहीं करेगा। ऐसा इसलिए क्योंकि असल बात ये पत्ता करना नहीं है, असल बात इस ओर ध्यान ले जाकर जनता को गुमराह करना कम से कम ख़बर गवाह का काम तो नहीं है। सवाल तो अब यहाँ यह भी होना चाहिए कि आखिर सब कुछ स्पष्ट क्यों नहीं हो पा रहा है? वैसे आपको याद होगा एक अमेरिकन राष्ट्रपति ने एलन मश्क और white हाउस के संबंधों पर कुछ कहा था! ठीक इसी की व्याख्या कर रहे हैं देश के प्रधानमंत्री मोदी के हालिया साक्षात्कार, जिन्हें देखकर वक्त को जाया जरुर किया जा सकता है लेकिन कुछ हासिल हो जाए ये कहना मुनासिब नहीं है ये कहना भी बेमानी ही होगी क्योंकि इन इंटरव्यू में एक बात पुख्ता तौर पर निकल कर आती है कि प्रधानमंत्री किसको साक्षात्कार देंगे ये भी शायद उद्योगपति ही तय करेंगे क्योंकि वो बड़े चैनल होते हैं भले ही उन्हें कोई ना देखे!
कुलमिलाकर इतनी तह तक जाने के बाद क्या ये नहीं कहा जा सकता कि राजीनीति और उद्योगपतियों में रिश्ते होते हैं ये सच हो ना हो, ये रिश्ता क्या कहलाता है कोई बता पाए या नहीं लेकिन यह सच जरुर हैं कि इस गठबंधन के बिना कोई सरकार बन जाए ये बड़ी बात है जो शायद ही कभी संभव हो पाए क्योंकि जनता समझदार कब होगी इसकी तारीख मुकर्रर नहीं हो पाई है! फिलहाल के लिए इतना ही, लेकिन जनता के मुद्दों पर उलगुलान जारी रहेगा, दीजिए इजाजत ज़ोहार
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